प्रशन 1 . लहना सिंह का परिचय अपने शब्दो में दें ?
उतर – लहना सिंह ब्रिटश सेना का एक सिख जमादार है वह भरता से दूर विदेश (फ़्रांस) में जर्मन सेना के विरुद्ध यूद्ध के मोर्चे पर डटा हुआ है वह एक कर्त्यवानिस्ट सैनिक है अदम्य साहस ,शौर्य एव निष्ठा से युक्त व योध के मोर्चे ओर डटा हुआ हुआ है विषम परिस्थिथि में भी कभी वोह हतोत्साहित नहीं होता है अपने प्राणो की परवाह किया बिना वह योध में खण्डको में रात दिन पूर्ण तन्मयता के साथ कार्यत रहता है कई दिनों तक खंदक के बैठकर निगरानी करते हुए जब वह ऊब जाता है तो एक दिन तो वह एक दिन सुब्दर से कहता है के यहाँ के इस कार्य (ड्यूटी) से उसका मन भर गया है ,
ऐसे निस्क्रिता से वह अपनी क्षमता का प्रदर्षन नहीं कर पा रहा है ! वह कहता है –“मझे तो संगीन चढ़ाकर मार्च का हुक्म मिल जाये ,फिर सात जर्मन को अकेला मारकर न लौटूं तो मुझे दरबार साहब की देहली पर मठा टेकना नसीब न हो !” उसने इन सब्दो को ढृढ़ निस्चय एव आत्मोसर्ग की भावना निहित है ! वह शत्रु से लोहा ले के लिए इतना ही उत्क्रिस्ट है की उसका कथन जो की इन सब्दो में प्रकट होता है –“बिना फेरे घोड़े बिगरता है और बिना लड़े सिपाही !” शत्रु की हर चाल को विफल करने की अपूर्व क्षमता एव दुरदरेस्ता उसमे थी !
उसके जीवन का एक दूसरा पहलु भी है उसकी मानवीय संवेदना ,बचनवद्धता तथा प्रेम !अपनी किशोरावस्था में एक वालिका के प्रति उसका अव्यस्त प्रेम था ! कलांतर में वह सेना में भर्ती हो गया तथा सयोगवस उसे यह ज्ञात हुआ की वह वालिका अब सूबेदार के पत्नी है उससे भेंट होने पर सूबेदार की पत्नी ने अपने पति एव फौज में भर्ती उसके अपने एक मात्र पुत्र की रक्षा का वचन लहना सिंह से लिया जिसका पालन लहना सिंह ने अपने प्राण की बाजी लगाकर किया !उसकी कर्तव्यपराण्यता तथा वचन का पालना करने का उत्क्रिस्ट उदाहरण है !
प्रशन-2 उसने कहा था ‘कहानी का केंद्रीय भाव क्या है ? वर्णन करें !
उत्तर – उसने कहा था ‘ प्रथम विश्वयूद्ध की की पृष्ठ भूमि में लिखी गयी कहानी है गुलजेरी ने लहना सिंह और सूबेदारनी के माध्यम से मानवीय सम्बन्धो का नया रूप प्रस्तुत किया है लहना सिंह सूबेदारनी की अपने प्रति विश्वास सी अभिभूत होता है क्युकी उस विश्वास की नीव में बचपन के सम्बध है सूबेदारनी का विसवास ही लहना सिंह को उस महान त्याग की प्रेयणा देता है !
कहानी एक और स्तर पर अपने को व्यक्त करती है ! विश्व यूद्ध की पृष्ट्भूमि पर यह एक अर्थ है की युद्ध भूमि -विरोधी कहानी है ! क्योँकि लहनासिंह के वलिदानं उचित समान किया जाना चाहिए था ! परन्तु उसका वलिदान व्यथ हो जाता है और लहना सिंह काकरुणु अंत यूद्ध की विरुद्ध में खड़ा हो जाता है लहना सिंह का कोई सपना पूरा नहीं होता है !
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