कड़बक शीर्षक कविता शीर्षक सारांश लिखें Kadbak Sirshsk
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उत्तर – एक आंख का होना पर भी मुहमद ने काव्य सुना है जिसने वह काव्य सुना वही मोहित हो गया – विधाता ने चन्द्रमा के सामान उसे संसार में बना कर कलंकी कर दिया पर वह प्रकाश ही करता है एक आंख में ही उसे संसार सूझता है नछत्र के के शुक्र के तरह वह उदित है जब तक आम में नुकली दभ नहीं निकलती है तब तक नकली नहीं बस्ती है ! विधि ने समुन्द्र का पानी को दोस कर दिया है ऐसा आसुस और आपार हुआ ! सुमरू पर्वत त्रिशूल से मारा गया है तभी तो वह स्वंर्गिरि होकर आकाश तक ऊंचा हो गया ! जब तक घरिया में मैल नहीं पड़ता तब तक कच्ची धातु में कंचन की चमक नहीं आती ! कवि का वह एक नेत्र दर्पण के सामने है और उसका भाव निर्मल है !स्वयं वह कुरूप है पर सब रूपवान उसके पाँव पड़कर चाव से उसका मुँह जोहते है !
मुहम्मद कवि ने यह काव्य रचकर सुनाया !जिसने सुना उसे प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ !इस प्रेम कथा को कवि ने रक्त की लेही लगाकर जोड़ा है ! इसकी गाड़ी प्रीति को आँसुओ से भिंगोया है ! और मन में यह समझकर ऐसा कवित्व रचा है की सायद जगत में यही निसानी बची रह जाय ! यहाँ है वह रत्नसेन जो ऐसा राजा था ,कहाँ है वह सुग्गा ,जो ऐसा बुद्धि लेकर जानमा?कहाँ है वह अलाउदीन सुल्तान !कहाँ है वह रहगवचेतन जिसने पदीमनी का शाह से बखाना किया ?
कहाँ है सुंदरी रानी पद्मावती ? यहाँ अब कोई नहीं है बल्कि यश के रूप में कहानी रह गयी है !फूल झड़कर नस्ट हो जाते हैं पर उसकी खुशबु रह जाती है !कवि यह कहना चाहता है की एक दिन वह भी नहीं रहेगा पर उसकी कीर्ति सुगंध की पीछे रह जाएगी !किसने इस जगत (संसार )में घोड़े के लिए अपना यश नहीं खोया अर्थात बहुत से ऐसा लोग है !जो यह कहानी पढ़ेगा मैं दो शब्दों कहता हूँ वह हमें याद करेगा !
प्रशन 3 .मलिक मुहम्मद जायसी दूसरे पद का भाव सौन्दर्य स्पस्ट करें !
उतर – प्रस्तुत पद में कवि अपनी सृजनशीलता के प्रति घोर विशवास दिखलाते है की उसने जो कथासृषिट की वह बड़ी ही मेहनत से की है ,उसने काव्य रचने में अपने कलेजे का खून लगा दिया ,उसने रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है जो गाढ़े प्रेम के नयनजल में भिगो -भिगो कर बनाया है ! कवी ने मन में यह समझकर ऐसा कवित्व र रचा है की शायद जगत में यही निशानी बची रह जाय ! कवि कहता है की कहाँ है वह रतनसेन राजा जो पदमावती के प्रेम के कारन योगी हो गया ! कहाँ है वह सुग्गा जो ऐसी बुद्धि लेकर जानमा था !कहाँ वह अलाउदीन सुल्तान ,कहाँ है वह राघवचेतन जिसने पदमनी का शाह से बखाना ! यहॉं अब कुछ नहीं रहेगा बल्कि यश के रूप में सिर्फ कहानी रह गयी
कवि में दृढ इच्छा सकती है की जिस प्रकार फूल झड़कर नस्ट हो जाते है पर उसकी खुशबु रह जाती है !कवि यह कहना चाहता है की एक दिन वह नहीं रहेगा पर उसकी कीर्ति सुगंध की तरह पीछे रह जाएगी ! भी इस कहानी को पड़ेगा वही उसे दो शब्दो में स्मरण करेगा ! कवि का अपना काव्य के प्रति यह आत्मविशवास अत्यंत सार्थक और बहुमूलय हैं !
प्रशन 4 . कवि ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से क्यों की हैं ?
उतर – कवि अपनी आँख की तुलना दर्पण से इस लिए करता है की वह अपनी आँख से जो देखता है उसे सच्चे रूप में प्रस्तुत करता है ! उसका भाव निर्मल है ! एक आँख होने पर भी काव्य लिखता है ! उस आँख को कलंक नहीं मानते बल्कि जिस तरह से दो आँखों से भी संसार दिखाई पड़ सकता था उसी तरह ैख़ आँख से से भी दिखाई देता है ! इसलिए वह आँख को दर्पण की तरह स्वच्छ मानता है जिसमे कोई लाग -लपेट नहीं है ! यही नहीं वह कुरूप दिखने पर भी सब रूपवान भी उसके पाँव पकड़कर चाव से उसका मुँह देखते हैं ! कारन साफ है की उसका भाव दर्पण की तरह निर्मल है !और भव आँख द्रारा ही हिर्दय में उत्पन होता है ! इसलिए कहा जाता है की आखें क्या हैं वे तो हर्दय का झरोखा है !
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