प्रशन 1 . बालकृष्ण भटट का लेखक का परिचय लिखें ?
उतर – भारतेन्दु युग के लेखको में बालकृष्ण भटट का स्थान भारतेन्दु के बाद आता है! आधुनिक हिन्दी साहित्य के विकाश में उनका महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है! विशेषत निबन्धकार एव पत्रकार के रूप में उन्हें इतिहास कभी भुला नहीं सकता! यों हिंदी में व्याहारिक आलोचना के वे प्रारंभिक प्रवक्ता है उन्होंने नाटक उपन्यास और कहानियाँ भी लिखी है! इस लेखक के अतिरिक्त अपने साहित्यिक व्यक्तित्व के माध्यम से उन्होंने अपने युग के तमाम लेखकों को प्रेरित और प्रभावित किया है ! बालकृष्ण भटट का जन्म इलाहबाद में 23 जून 1844 ई में हुआ ! माता का नाम पार्वती देवी, पिता का नाम बेनी प्रसाद भटट तथा पत्नी का नाम श्रीमती रमादेवी था 1 इनके पिता व्यापारी थे !माता सुसंस्कृत महिला थी और उन्होंने इनके मन में पढ़ने की विशेष रूचि जगायी ! प्रारम्भ में उन्होंने संस्कृत पढ़ी फिर प्रयाग के मिशन स्कूल से एन्ट्रेस की परीक्षा में सन 1867 में बैठे पर सेकेण्ड लैंगवेज संस्कृत की परीक्षा की व्यवस्था न होने से परीक्षा न दे सके ! इस परीक्षा के बाद ही वे मिशन स्कूल में अध्यापक हो गये ! पर 1869 से 75 तक रहे ! ईसाई वातावरण से उनकी पट नहीं सकी और शीघ्र ही वे त्यागपत्र देकर अलग हो गये ! इसके पश्चात् संस्कृत का स्वाध्याय उन्होंने अत्यन्त लगन के साथ किया ! भटटजी के पिता एव अन्य सम्बन्धी चाहते थे कि वे पैतृक व्यपार में लगे पर भटटजी का पण्डित मन व्यापर में नहीं रमा ! प्रशन गृहकलह के बवण्डर से अत्यन्त दुःखी होकर उन्हें अपना सम्पंन पैतृक घर छोड़कर अलग रहने के लिए बाध्य होना पड़ा !
बालकृष्ण भट्ट
भटट ने अपना सारा जीवन कर्मठतापूर्वक साहित्य को अर्पित कर दिया ! 20 जुलाई ,1914 को उनकी प्रयाग में मृत्यु हो गयी ! भारतेन्दु युग के लेखकों के सम्बन्ध में यह महत्वपूर्ण तथ्य है कि वे सभी लेखक भी थे और पत्रकार भी !बलिक यों कहे की वे लोग मूलत पत्रकार थे और उनका अधिकांश लेखन अपने -अपने पत्रों की कलेवर पूर्ती के लिए हुआ है ! निबंध को कला रूप के अर्थ में लेकर विचार किया जाय तो प्रतीक होगा कि भटटजी हिंदी के पहले निबंधकार है जिनके निबंधों में आत्मपरकता ,व्यकित्त्वप्रधानता एव कल्त्मक शैली का प्रयोग हुआ है ! उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में एक हजार के लगभग निबंध लिखे होंगे पर उनमे में से सौ निबंध महत्वपूर्ण है ! बहुत से लोग उन्हें हिंदी का अडीसन कहना चाहते है ! युगीन अन्य साहित्कारों की भाँति उन्होंने राजनितिक सामाजिक एव साहित्यक सभी विषयो पर कलम चलाई है !
राजनीतल निबंधों में जहाँ अत्यंत प्रखर आक्रोश व्यंजित है तो साहित्यक निबंधों में भावना का ललित बिलास ! अपने सामाजिक निबंधों में भट्ट जी ने समाज में प्रचलित बुराइयों के प्रति आकर्षित किया है एवं नई समाज का आदर्श भी करना चाहा है साहित्यक -कलात्मक निबंधों में उनकी मुहावरेदार सरल एवं सब्द चयन की आवेग असूचि की परित्याग की उत्कठा तथा शिव को ग्रहण की त्रीव लालसा मिलती है इन निबंध में मिलती है
बालकृष्ण भट्ट हिंदी ‘प्रदीप ‘का संपादन किया ! उन्होंने निबंध की अलाबा उपन्यास -रहस्यकथा ,नूतनबरमचारी अजान एक सुजान यात्रा ,रसातल यात्रा ,उचित दक्षिणा ,हमारी घड़ी , सदभाव् का आभाव आदि लिखा ! भट्ट जी नई उपन्यास की अतरिक्त नाटक भी लिखें – पदामावती चंद्रसेन कीरताजुरनीय पशु चरित वेणीसंहार ,शिशुपाल बघ ,शिक्षादान ,नयी रौशनी का विष ,सीता वनवास ,पतित इत्यदि !