राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीय अखंडता

राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीय अखंडता

राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीय अखंडता निबंध सभी परीक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीय अखंडता महवत्पूर्ण जानकारी !

किसी भी राष्ट्र की शक्ति उसकी जनसंख्या में नहीं अपीतु एकता में निहिता होती है देश की एकता खंडित हुई की एक देश बिभाजित हुआ ! मानना होगा की जन जन के बिच प्रचलित यह कहावत की घर का ‘ भेदिया लंका ढाहे ‘ शत प्रतिशत ऐसी  ऐसी भाव भूमि को खा जाता है हमें अपने देश के प्रति एकता  यह कहावत की घर का भेदिया लंका ढाहे शत – प्रतिशत इसी भावभूमि में कहा जाता है ! वह घर परिवार के स्तर पर कहा गया है और हमको राष्ट्रीय स्तर पर विचारण है ! परन्तु यह आप निशचित मानें की जैसे कलह से घर -परिवार की सन्ति भांग होती है और परिवार का उत्तरोत्तर विकाश स्वार्थपरता की स्थित में बाधित हो जाता है ठीक राष्ट्र के साथ भी स्तर पर अपना भेदभाव यदि एकताबद्ध नहीं रहेंगे तो वः राष्ट्र देखते – देखते पतनोन्मुख ही नहीं होगा अपितु सदा के लिए दस्ता की बड़ी में जकड़ जायेगा ! विशेष दूर में न जाकर अपने देश के ही बात ले ! एक समय था जब हम धन्यधन्य से परिपूर्ण थे ! कहते है लोग की यहाँ दूध कि नदियाँ बहती थी और आज दूध के दर्शन में तो  वह भी नहीं ! महुआ दूध और पाउडर से बने दूध प्लास्टिक की थैली में लोग प्राय लेने को विवश हैं ! आखिर यह विवसता क्यों और कैसे आई -सबके पहलु में एकता का आभाव है ! आदमी स्वार्थ -परक और व्यक्ति -परक वहो हाय है !

राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीय अखंडता

हमारा समाजिक -पारिवारिक स्वरूप दिनानुदिन खंडित होता जा रहा हैभाई -भाई में भेद है फिर  इतना सारा सुख मिलना तो सहज नहीं है १ अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकताब ! एक ही साथ हमे खेत गृहस्ती व्यवसाय और सरकारी या अर्द्धसरकारी सेवा का संपादन नहीं कर सकते ! ये साडी चीजे तो समलिते परिवार की स्थिति  में ही संभव है !पुनशच इससे भी सटीक और उपयुक्त उदाहरण लेना चाहते है तो हम अपने मानव शरीर को ही ले जो नाक आँख कण हाथ पैर सर आदि ! विभिन अवयवों से समनिवत है ! ये सरे अंगोपांग मिलकर मानव सरीर का रूप धारण करते है

राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीय अखंडता

यदि सब -के – सब अलग कर दिए जाए तो मानव की सुन्दर काया निष्प्राण होकर विलुप्त हो जाए फिर न तो इस सुन्दर मानवीए शरीर का बोध होगा और न उनके अंगोपांगों का ही ! ठीक यही !स्थिति राष्ट्र की होती हैजब उनके नागरिकधर्म सम्परदाय जाती वर्ग और भावना का आधार ग्रहण कर आपस में लड़ते -झगड़ते है ! उसके इस आपसी का लाभ निकटवर्ती अन्य राष्ट्रो में भेद -भाव की स्थिति में अपना उल्लू सीधा करने की तक लगाए रहते है !एक समय था की हमरा देस सभय्ता और संस्कृत के सर्वोच्च सिखर पर था !में यह इतना आगे था की स्वर से देवतागण यही की सैर करने पोषक -विमान से आया करते थे फिर यह के लोग देवताओ को युद्ध  सहायता करने हेतु स्वर से लेकर पटल तक की दौड़ लगते थे रूस और अमेरिका के वैनानिक आज चाँद पर पहुंचकर ही अपनी कीर्ति पटक फहरा रहे है

राष्ट्रीय एकता अथवा राष्ट्रीय अखंडता

भारत के लिए कभी यह आम बात थी ! मन्ना होगा पुरे विश्व में हु ज्ञान की रशिमय भारत ने ही कभी प्रदान की थी ! वेध और उपनिषद की रचना हमारे ऐसी के उद्धघोषक तत्व है १   इतना पीछे क्यों हो गए ! इसके मूल में हमारी कटोरी और एकता का तरोभाव ही मुख्य कारण है वरन मुठी भर हो गई ! की यह हिमत कैसे होती की अर्जुन -भीमा की संतान को पद्धलित कर घुटने टिका देते ! क्या देहेस में वीरता के कमी थी !कतई नहीं मात्र एकता का आभाव था ! तभी तो हम शताबीध्यो तब गुलामं बने रहे और जब तक आपस में लड़ते रहे विधेसियो ने अपने शसन कायम रखा ! परतु इस फिरंगियों के अत्याचार धमन और शोषण से संत्रस्त होकर संगठित  है

 

Ranjay Kumar is a Bihar native with a Bachelor's degree in Journalism from Patna University. With three years of hands-on experience in the field of journalism, he brings a fresh and insightful perspective to his work. Ranjay is passionate about storytelling and uses his roots in Bihar as a source of inspiration. When he's not chasing news stories, you can find him exploring the cultural richness of Bihar or immersed in a good book.

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