पठित पदों के अधार पर तुलसी की भक्ति का परिचय दिजीए
भक्तिकालीन रामाश्रथी काव्यधारा कै श्रष्टतम कबि गोस्वामी तुलसीदास अपनेकाव्यात्मक समृद्धि की बदौलत कवि शिरोमणि की उपाधि सै बिभूषित किए जाते हैं। उन्होंने दुगृदृछिलाघली, दोहावली, बिनय पत्रिका और रामचरितमानस कै माध्यम से एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया जिसर्क विस्तृत दायरे कै अंदर भारतीय जनसामान्य की बिखरी हुई चेतना सिमट आयो। क्या काव्य सवगिपृर्णता का ठत्कृष्टतम उदाहरण है। भक्तों कै आश्रम रने लेकर जनसामान्य हाँ चौपाल तक और ढोल झाल से युक्त गायन मंडली स लेकर प्रकांड पंडितों की अनुसंधानशालाआँ तक समादृत तुलसी का काव्य उनकी असीम समन्वग्रात्मकता का साक्षी है। डॉ० जॉर्ज ग्रियर्सन ने तुलसीदास को बुद्ध कै बाद मारत कै सबमे जहं लोकनायक की उपाधि दी थी। इस सन्दर्य एँ आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है “मारत का लोकनायक की उपाधि दी थी।
इस संदर्भ में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है ” मारत का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय का सर्क । क्योंकि भारतीय समाज मैं नाना भाँति की परस्पर बिरोघिनी संस्कृतियाँ साधनाएँ, जातियाँ, आचारनिष्ठा और विचार-पद्धतियाँ प्रचलित हैं। बुध्ददेव समन्वयकारी थे, मीता में समन्वयकारी चेष्टा है और तुलसीदास मी समन्वयकारी थे।” सगुण-निर्मुण, ज्ञान~मक्ति, शैव-वैध्याव, संस्कृत हिन्दी आदि मॅ उन्होंनै समन्वय र्क उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। यही कारण था कि उन्होंने राम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम को अपना काव्य-नायक वनाया
और उनर्क चरितगान र्क बहाने हिन्दी जगत को ‘कवितावली’ तथा ‘विनय-पत्रिका’ जैसै मुक्तक संग्रह तथा ‘रामचरितमानस’ जैसा महाकाव्य प्रदान कर गए। समन्वय का अयं ही होता है एक सूत्र में पिरोने अबिरोधी बनाने का प्रयासा तुलसीदास की प्रबंध-प्रियता और पटुता का शायद यही मुख्य कारण था। विथिन्न छन्दी और प्रचलित काव्य रूपों में उन्होंने अनेक प्रयोग किए पर अपने कवित्व को ‘रामचरितमानस’ जैसै प्रबन्थ से चरम सार्थकता प्रदान कर दी।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कै अनुसार “पण्डितों ने सप्रमाण सिद्ध किया कि उस युग मॅ प्रचलित ऐसी कोई भो काव्य… पद्धति नहीं थी जिस पर उन्होंने अपनी छाप न लगा दी हौ। छन्द र्क छप्पय, कबीर कै दोहे, सूरदास कै मद, जायसी की दोहा, चौपाइयाँ, रीतिकारों कै सवैया-कवित्त, रहीम कै बरवै, गाँव चालों कै सोहर आबि जितनी प्रकार की छन्द-पद्धतियाँ उन दिनों लीक मॅ प्रसिद्ध थीं सबको उन्होंने अपनी असाधारण प्रतिमा कै वल पर अपने रंग में रंग दिया।
” यह तो शैली या पद्धति पक्ष की बात हुई पर तुलसी कै काव्य की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता उनकी लोक चेतना है। संक्रांति काल र्क नाना आडंबरों और ऊपापोहों रने मरे समाज में उत्पन्न और कर्कश गरीबी तथा उपेक्षा में मला-बड़ा उनर्क जैसा संवेदनशील कवि राम जैसै लीकादशं चरित्र को पाकर एकांगी रह ही नहीं सकता था। जीवन को संपूर्णता में ग्रहण करने और व्यजित करने की चेष्टा में तुलसी कौ अद्वितीय सफलता मिली है। उनर्क काव्य की मूल भावभूमि को समझने में रामचरितमानस कै मंगलाचरण को देखना पर्याप्त है।
रामचरितमानस कै नायक राम हैं। तुलसी राम र्क अनन्य भक्त हैं और मानस कै मंगलाचरण में गणपति वन्दना कै बाद सर्वप्रथम मवानी और शंकर की वन्दना श्रद्धा और विश्वास कै रूप में की जाती है। इसकै पूर्व प्रथम एक ही रलंग्रक में गणेश और सरस्वती की वन्दना प्रस्तुत कर दी गयो है। आगे समान चित की विशेषता सै युक्त संत की वन्दना तो है हो असन्त कै भी चरणों की वन्दना की है। लिखते है